Sunday, April 24, 2016

यायावरी आवारगी - अनुराधा बेनीवाल - समीक्षा

आजादी, घुमक्कड़ी के साथ साथ रिश्तो की नजाकत को समझते हुए, भारतीय रूढिवादी परंपराओ को कोसते हूए युरोप का यात्रा वृतांत है यह किताब । युरोप को एक गोलाई मे नापते हुए पेरिस, ब्रस्सल्स,एम्सटर्डम, बलिॅन, प्राग,ब्रातिस्लावा,बुडापेस्ट,इंसब्रुक, बर्न, शहरो की यात्रा है।
सोच का दायरा, धन, सोहरत, पेरिस जैसे बड़े शहर मे रहने, बहुत पढा लिखा होने से नही बढता यह किताब समझाने की कोशिश करता है ।
इस किताब को पढते हुए कुछ पंक्तियो जो अच्छी लगी तथा एक नया ताना बाना बुनते हुए दिखी उसे नीचे उद्दगृत कर रहा हुँ -
● समाज का विकास शायद इन नीले, पीले काले थैलो से ही नापा जा सकता है।
● अध्यात्म का मतलब है - "होना"। जो संभावनाए हमारे अंदर छुपी है,उन्हे उभार सकना। उन्हे पुरा करने के मौके मिलना और खुद मे पुर्ण हो सकना।
● जब हम जिंदगी का बड़ा सा हिस्सा जी लेते है। और कुछ कुछ महीने भी यो गुजरते है, जैसे वही के वही।
● काफी झगड़े तो नजदीकीयां ही पैदा कर देती है शायद ।
● मुझे लगता है, बच्चे यही आकर पैदा करने चाहिए । एक बात और, यही पहला देश है जिसमे आदमियो के टाँयलेट मे बेबी चेजिंग की सुविधा बनाई गई है । नेशनलिस्ट और लिबरल का ऐसा कॉम्बिनेशन नही देखा सुना था कभी।- बलिॅन शहर
● या शायद जान गई हो कि ना हँसने से कोई फिक्र दुर नही होती ।
● ब्रातिस्लावा शहर - एक तरफ की नफरत जरूर दिखाई पड़ती है। शायद डेमोक्रेसी की तरह ही कम्युनिज्म के भी कई रूप होते होंगे ।
● जाने किस पर विश्वास था।भगवान पर ? खुद पर? प्रकृति पर या खुद पर? किसी पर यकीन था मुझे कि सब आराम से हो जाएगा ।
● जिस समाज मे इंसान इंसान पर भरोसा कर पाए, वहाँ जीना सहज हो जाता है ।
● जहाँ लोग कोआपरेटिव लिविंग मे रहते है।- इंसब्रुक शहर ।
● घटनाओ को एक ही क्रम मे बार बार सोचते रहो तो उसी पर यकीन होने लगता है।
● लेकिन एक भाषा जिसमे वे लिखना, पढना,बोलना,सोचना,कहना,सपने देखना - सब कर पाएँ। बिना झिझक के। बिना कुल फुल की परवाह किए अपने आप को ब्यक्त कर पाएँ ।
● मै बनारस के धार्मिक हिन्दूओ के घर पर और फतेहपुर सीकरी मे सलाफी मुसलमानो के घर पर रूका।
● मुझे बताओ मेरे कल्चर के ठेकेदारो,क्यों इतना मुश्किल है एक लड़की का अकेले घर से निकलकर चल पाना? जो समाज एक लड़की का अकेले सड़क पर चलना बर्दास्त नही कर सकता, वह समाज सड़ चुका है । वह कल्चर जो एक अकेली लड़की को सुरक्षित महसुस नही करा सकता, वह गोबर कल्चर है ।उस पर तुम कितने ही सोने चांदी के वर्क चढाओ,उसकी बास नही रोक पाओगे ,बल्कि और धँसोगे। मेरी बात सुनो इस गोबर को जला दो ।मै चीख रही हु जोर जोर से जला दो,जला दो।

No comments:

Post a Comment