Thursday, October 22, 2015

हरिवंशराय बच्चन की एक सुंदर कविता ...

ख्वाहिश नही मुझे मशहूर होने की। आप मुझे पहचानते हो बस इतना ही काफी है।
अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बुरा जाना मुझे। क्योंकि जिसकी जितनी जरुरत थी उसने उतना ही पहचाना मुझे।
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा भी कितना अजीब है, शामें कटती नहीं, और साल गुज़रते चले जा रहे हैं....!!
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी, जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं, और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं।
बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर... क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है..
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना।
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है।
जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दूश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले .!!.
एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली.. वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे..!!
सोचा था घर बना कर बैठूगा सुकून से.. पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला !!!
सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब.... बचपन वाला 'इतवार' अब नहीं आता |
जीवन की भाग-दौड़ में - क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम और आज कई बार बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है..
कितने दूर निकल गए, रिश्तो को निभाते निभाते.. खुद को खो दिया हमने, अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते..
"खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ, लापरवाह हूँ, फिर भी सबकी परवाह करता हूँ..
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, फिर भी, कुछ अनमोल लोगो से रिश्ता रखता हूँ...!


18 comments:

  1. मैंने बच्चन को जितना भी पढ़ा है उसमें इस कविता के तो दर्शन नहीं हुए। ये शब्दावली भी बच्चन की नहीं लगती। कृपया बताएँ कि यह बच्चन की किस संकलन से आकलित है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. मुंशी प्रेमचंद की कविता है।

      Delete
    2. इस रचना में एक जगह जनाब गालिब साहब कि ज़िक्र है जोकि कवियों और शायरों का शौक रहा है अपना नाम अमर करने का।
      यह कविता मुंशी प्रेमचंद जी के नाम से भी काफी वायरल है।गूगल भी सच्चाई न बताकर इधर उधर की धांग रहा है।

      Delete
  2. Bilkul sahi kaha ye shabdavali Bachchan ji ki nahi balki prem chand ki hau

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रेम चंद कबसे कविता लिखने लगे

      Delete
  3. Read carefully...in this poem Galib is written as a poet sukoon ki baat mat Karo a Galib

    ReplyDelete
  4. समझ नहीं आता कि ब्लॉगर ने बिना जानकारी के इस रचना को बच्चन जी के नाम से कैसे प्रसारित कर दिया है। पाठकों के पूछने पर भी स्रोत नहीं बता पाये। अगर उन्होने सिर्फ उत्साह में आकर गलती की है तो पाठकों से क्षमा मांगनी चाहिए। बेचारे गालिब को ज़बरदस्ती ठूंस रखा है।

    ReplyDelete
  5. बेचारे गालिब को अंजाना मेहमान बना दिया।

    ReplyDelete
  6. कविता को पढ़ने पर स्पष्ट होता है। कि इसमें अधिकतर उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है। जहां हरिवंश राय बच्चन जी ने उर्दू के शब्दों का प्रयोग बहुत ही कम या ना के बराबर करते थे वहीं मुंशी प्रेमचंद्र जी उर्दू शब्दों का प्रयोग करने में माहिर थे।

    ReplyDelete
  7. जहां तक मेरी जानकारी है, मुंशी प्रेमचंद की कविता है।

    ReplyDelete
  8. सच क्या है,,, कोई प्रेमचंद कोई बच्चन तो कोई ग़ालिब बता रहे,,,,,

    ReplyDelete
  9. ये ब्लागर कोनसा नशा करता है।
    भाई कोई स्रोत नही कोई साल तारीख़ नही इसके आगे पीछे की कोनसी कविता उसका भी नही पता ग़ालिब का अंदाजे बया कुछ और हे,मुंशी प्रेमचंद उपन्यास के सम्राट है,हरिवंश राय बच्चन मधुशाला मधुबाला के दीवाने है,
    हम मुफ्त में ही दिल जलाने वाले है,

    ReplyDelete
  10. यह कविता मिली जुली कविताओं का संग्रह मालूम होती है... सच्चाई jo bhi हो कविता ह्रदय को छूने वाली हे

    ReplyDelete
  11. सुनने पर ये सभी पंक्तियां गुलज़ार साहब की लगती है, बच्चन जी की नहीं लगती। वास्तव में इसका रचयिता है कौन ? सब भ्रमित हैं

    ReplyDelete